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जलाये थे दिए गर हर घर जो हमने
तो फिर कहीं कुछ अधेरा सा क्यों है
बिखेरा था संगीत हर सूं जो हमने
तो फिर कहीं ये चुप्पी सी क्यों है
कोई भी क्यों छूटा,कोई भी क्यों टूटा
कहीं भी कोई रूठा रूठा सा क्यों है
खुशियों की रंगी इस हसीं रोशनी में
कोई अपने अपने में सिमटा सा क्यों है
चलो उन अंधेरे कोनों को ढूंढे
देखें वहां अभी तक रोशनी क्यों नही है
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