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उनकी राख कोई माथे पे अपने लगाए क्यों
उनके लहू से कोई अपनी मांग सजाए क्यों
तमाम उम्र छिपते फिरे वतन पे जांनिसारी से
कोई उन्हें अपने सीने से अब यहां लगाए क्यों
कलाई को उनकी कोई, राखी से सजाए क्यों
उनकी यादों को भी कोई सीने में छिपाए क्यों
चली है अब मुहिम इस वतन पे जां लुटाने की
वतन फरोशों को यहां,कोई अब अपनाए क्यों
हमारे वतन में पैदा हुए अब नए जांनिसार हैं
बढ़ते कदम उनके भला अब डगमगाए क्यों
अब पर्वतों को चीरती चल पड़ी है नई हवा
किसी जलजले से अब मेरी जमीं थर्राए क्यों
Wandering_gypsy_rns
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