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ये 

जो इस तरह से तुम हर महफिल मे सब से किनारा कर लेते हो 

कौन सी यादों का जाम है वो 

जिसे तुम अपना सहारा कर लेते हो 

बड़े ही खोए से लगते हो 

अपनी ही किसी दुनिया मे 

होश सम्हालते ही असल दुनिया मे खुद को आवारा कर लेते हो ..

ना जिक्र करते हो ना जाहिर करते हो अपने जज्बातों को 

सबसे किनारा कर के बस एक इशारा कर देते हो 

जो समझ पाये जरा भी वो ही जान पाए तुम्हें 

जो ना समझे तो अक्सर उस महफिल से तुम किनारा कर लेते हो|

-विजय बिष्ट

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