
पूर्वमेघ
रामगिरी के क्षेत्र में
श्राप त्रस्त एक यक्ष
सहे वियोग की वेदना
हुआ मोह से ग्रस्त!
विरह काटते काटते
बीते कितने मास
पर्वत पर यूँ झुका मेघ
मानो गज लेता श्वास!
मोहित होकर काम से
हुआ यक्ष उत्कंठ
कंठालिंगन की लालसा
उठा प्रिय प्रेम का दंश!
देख के श्रावण को निकट
की अनुनय से मेघ
प्राण प्रिया मेरी जहाँ
पहुँचा दो संदेश।
चेतन अचेतन बोध कहाँ
कामभूत था यक्ष
"हे मेघ सुनो विनय मेरी
रख लो मेरा पक्ष!"
"हे पुष्करावर्त अनुरागी
इंद्र के तुम अधिकारी
विधिवश प्रिय से दूर पड़ा मैं
आज बनो भवहारी!"
"है अलका नाम नगरी एक
जहाँ ज्योति शिव का चंद्र
हे मेघ संदेश मेरा
तुम ले जाओ अविलंब!"
"प्रिय आयेंगे सोच सब
व्याकुल हृदय लिये
देखते हैं आकाश को
जब जब मेघ घिरे!"
"तुम बतलाओ मेघ मेरे
होगा वो कौन अधम
देख के तुमको गगन में
जिसमें न आये प्रेम!"
"बंधा हुआ मैं पाश से
कर रहा हूँ तुम्हें प्रणाम
धीमी धीमी वायु संग
ले जाओ मेरा नाम!"
"विरह है कैसे काटती
देखती मेरी बाट
हे मेघ तुम बिना रुके
ले जाओ मेरी बात!"
"नारी हृदय पुष्प सम
थामे आशा का साथ
रहता है प्रिय मिलन को
बैठ लगाये आस!"
"सुन सुहावना गर्जन जैसे
हरित वर्ण होती है धरा
साथ होंगे राजहंस सब
करो कैलाश की यात्रा!"
"विदा मित्र इस गिरी से
जिसपे रघु पाँव की छाप
जो नित अश्रु बहाते हैं
तुमसे मिलने पश्चात!"
"उत्तर तुम्हारा हेय है
जाओ मित्र तुरंत
देख श्याम वर्ण तुम्हें
बालाएँ होंगी दंग!"
"झिलमिल ज्योति धनुष की
मनो इंद्र का हो धनुषखण्ड
खिल उठेगा रुप तुम्हारा
जैसे मोर से मुख गोविन्द!"
"तुम खेतों के प्राण हो मेघ
बढ़ो उत्तर की ओर
उठे सुगंध गीली मिट्टी की
बरसो जब तुम जोर!"
"अद्भुत दृश्य बनाते हो
घेरो जब तुम पर्वत
लदे आम्र वृक्षों से
देवों के जो स्थल!"
"हो जाओ जब भारहीन
तुम बरस उन गिरीशिखरों पर
चल देना ए मित्र मेरे
पुन: तुम अपने पथ पर!"
"पी लेना नर्मदा का जल
जो गज क्षेत्र में बहती
जामुन के वन बिखरें जहाँ
कल कल धारा बहती!"
"मार्ग मिलेंगे कई मीत
तुम बढ़ते ही जाना
भौंर कदम्ब कली
गज गंध मार्ग मिलेंगे माना!"
"कुटज के गंध से महकी चोटी
देर ना रुकना मेघ
मोर बुलाएं नृत्य रिझाएँ
चल देना तुम वेग!"
"हे मेघ तुम मार्ग में
ला दोगे खुशहाली
वन में होगी गूँज
हर्षित होंगे माली!"
"विदिशा के ठहराव का
करना तुम रसपान
वेत्रवती के जल से
भर लेना सोपान!"
"कुछ निचलें पर्वतों को भी
कर लेना तुम स्पर्श
छोड़ आना पत्तों के किनार पे
कुछ बूँदे कुछ हर्ष!"
"पहुँचो शिव की नगरी जब
मिलेंगे चंचल नैन
वर्षा की मधुर ध्वनी सुन
जो होंगे बेचैन!"
"प्रिया का प्रणय निवेदन हो
प्रथम आता है शृंगार
सम भावी निर्विन्ध्या को
कर जाना तुम पार!"
"छोड़ जाना कुछ प्रेमोपहार
निर्विन्ध्या के पास
तट के वृक्षों से आच्छादित
जो ले के बैठी प्यास!"
"जाना तुम उज्जयनी
कर अवंतिका पार
स्वर्ग से बचे पुण्यफलों
से बनता शिव संसार!"
"केशों को महकाती धूप
होगी तुम्हें सहायक
प्रेम नृत्य मोरों का मेघ
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