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एक गाड़ी के पीछे गुजरता गया हूँ,
गाड़ी में मैं था-पीछे भी मैं था,
मुझी सा एक शख़्स था गाड़ी के आगे,
और गाड़ी के नीचे चमकीली सड़क थी, पूरी की पूरी शहर की सड़क थी,
थी सड़क के किनारे कुछ भद्दी सी झुग्गी, सुना है कि झुग्गी कभी एक घर था,
मगर इस सड़क ने, शहर की हरक ने, बनाए हैं कितने किस्से क़िताबी, कभी झोपड़ी-कभी एक झुग्गी-कभी
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