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एक गाड़ी के पीछे गुजरता गया हूँ,
गाड़ी में मैं था-पीछे भी मैं था,
मुझी सा एक शख़्स था गाड़ी के आगे,
और गाड़ी के नीचे चमकीली सड़क थी, पूरी की पूरी शहर की सड़क थी,
थी सड़क के किनारे कुछ भद्दी सी झुग्गी, सुना है कि झुग्गी कभी एक घर था,
मगर इस सड़क ने, शहर की हरक ने, बनाए हैं कितने किस्से क़िताबी, कभी झोपड़ी-कभी एक झुग्गी-कभी बेघर इंसां कभी बेबसी भी,
और तो मुझको ख़बर बस है इतनी की फ़िर से शहर में सड़क आ रही है।
मुझे क्या है मैं तो शहर में नया हूँ, अभी बस हूँ आया, सड़क के सहारे, ये होता नहीं फ़िर तो कैसे मैं आता?
मैं आता नहीं फ़िर लिख कैसे पाता,
सड़क के किनारे है भद्दी सी झुग्गी।
-विक्की आनंद (कैप्टेन)
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