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जब तुम आये थे पहली बार
मेरे अँगना
इतनी खुशी, पड़ोसियों का भी
क्या कहना
हर कोई एक बार देखना चाहता था
एक बार स्नेक गेम खेलना चाहता था
लगा कि ये जरूरी है
अपनों का पास लाएगा
वक़्त बेवक़्त अपनों चिंता
से निजात दिलाएगा
हुआ भी ऐसा, उस समय
महंगी कॉल पर काम के चर्चे
समय बीता जरा कुछ और
फ्री की बातों का अनोखा दौर
जरूरतें नशा बनती गयी
फ़ोन से दोस्ती
अपनों से दूरी होती गयी
आज दो का परिवार व्यस्त परिवार
कुछ घंटे ही पाता है
फिर भी बस फ़ोन को ही अपना
सब कुछ बताता है
फ़ोन आत्मा बन चुकी है हमारी
केवल एक साधन है
इस बात को महसूस करना समझदारी।
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