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सान्ध्य बीती जैसे जीवन नूर की नैया
बहती रेत – सी पीछे छुटती छैया
तस्वीर बन रचती जैसी हो शशि राग
बन , मुरझा उठीं अब अनस्तित्व महफ़िल
महाकाल का वज्र छिपा यह उपवन है किसकी ?
मन्त्र – मुग्ध की ललकार नही , यह धार शिखर का तेज नहीं
बढ़ आँगन उस शिखर तक लौट रहें वो किस नभमण्डल ?
यह खग किस ओर असमंजस में चला किस प्रतीर ?
इन्द्र खड्ग कौन माँगती , अब श्री कृष्ण गोवर्धन नहीं ?
यह वारिद स्वयं विप्लव द्युति आनन किस आण्विक ?
चलती राह तिरछी किरणों से गिरती ब
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