कवित्त १०१'s image
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अंधेरों के अतीत के गहन गहनों के 
गहराइयों के तल में 
खोज - खोज बाहों में भरकर 
किसे पाता है.... कभी जाना है !

कौन कहते हैं वो शरीर मेरा है ?
बताता हूँ आज !
विपरीत शरीर पाने के लिए ही जीते हैं 
सिर्फ अर्थ के कटोराधारी वो भिखारी हैं
किंतु अमीरीजादी है।
सब इसी के दीवाने हैं
चाहे वह महफिल के हुस्न को लूटाएं हो
या दीन से छीन लाएं हो।
फिर वह कोठरी में बिताते हैं 
जहां सिर्फ दो विपरीत देह 
अर्थ के लिए बोली भाव में बिकते हैं 
और पाने वाले बड़े चाव से पाते हैं।
बेपर्द थे किंतु उघाड़े हुए
चल रहे हो जैसे मानो
पूरा अलग - अलग शरीरों का झुंड
ये दृश्य अवलोकन कर
कुक्कुर भी लार टपकाने लगा हो।
खींचाव ऐसा हो दोनों हो रतिक्रम में 
बीती काल से ।

कहते हैं फिर......
[ शरीर को तृप्ति के लिए ]
मैं तुमको स्वयं में पाता हूँ, पार हो जाऊं 
अविचल बन आर - पार 
किंतु मैं रुक जाता हूँ, थोड़ा 
जमाना का डर है, तुम्हारा डर
ये फूलों का घर है या
तुम्हारा बसेरा, असमंजस था ।

पंक्त के चहुँओर कौन तान है ?
संगीत दे दो इसे 
सा रे ग म प ध नि 
कह सके, गुनगुना सके 
एक सुकूननियत में दे दो 
चार या आठ कर दे 
आहों में भरकर शागिर्द दे
ले कौन.....?, कहे किसे ।
अन्त में चुप हूँ, रहूंगा भी
बस विवश हूँ ।

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