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आरक्षण का दंश झेल रहे सवर्ण को अपनी तस्तरी में 10 प्रतिशत की बोटी क्या दिखी उसकी सारी छुआछूत छूमंतर हो गई। तस्तरी देख कर आठ लाख कमाने वाले गरीब सवर्ण के मुंह में पानी आ रहा है। वहीं उस्ताद की घाघ नजर गहराई नाप रही थी कि सवर्ण वोटों की तिजोरी कोई और न लूट ले। खैर मैं असल मुद्दे पर आता हूं। पचास प्रतिशत सीटों के दावेदार गरीब सवर्ण कल भी सवर्ण कहलायेंगे। जबकि सिर्फ चालीस प्रतिशत सीटों पर समेट दिये गये ओबीसी क्रीमीलेयर को पिछड़ा शब्द से संबोधित किया जायेगा।
आइये एक नजर सांख्यिकी पर डालते हैं। देखते हैं कौनसे वर्ग को अधिकतम कितनी सीटें मिल सकती हैं।
गरीब सवर्ण 40%+10% = 50%
अमीर सवर्ण 40%
क्रीमीलेयर ओबीसी 40%
नॉन क्रीमीलेयर ओबीसी 40%+27% = 67%
एससी एसटी 40%+22.5% = 62.5%
यदि कोई बुद्धिजीवी इन आंकड़ों को पहली बार देख रहा है तो यह चोंकाने वाले भी हो सकते हैं। अमीर सवर्ण और क्रीमीलेयर ओबीसी दोनों ही अधिकतम 40% सीटों पर अपनी दावेदारी कर सकते हैं। जबकि गरीब सवर्ण के दायरे में 50% सीट शामिल हैं। गौरतलब है कि आय प्रतियोगी का पारिवारिक मुद्दा है जबकि जाति जनसंख्या के एक बड़े वर्ग से ताल्लुक रखती है। स्पष्ट है कि किसी परिवार की आय निश्चित धनराशि से अधिक होने पर उनकी जाति का नाम पिछ
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