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निगाहों के चित्रपटल पर
सभी दृश्य गुमसुम हैं।
मेरे चराग़ मद्दिम हैं मगर
खयाल खूब रोशन हैं।
अंधकार में देखता हूं
अतीत की स्मृतियां।
ख़यालों में निहारता हूं
मौसम की झलकियां।
ढ़लती शाम की तरह
हर सुबह गुजर जाती है।
निगाह वालों को यह
बेबसी कहां नजर आती है।
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