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"वो आईने का शख़्स"

Varsha SaxenaVarsha Saxena October 26, 2021
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इक शख़्स मेरा रहनुमा बन रस्ता बताता रहा,
गिरने पर मेरा हाथ थाम हर बार उठाता रहा।

उसका वो साया काफ़ी कुछ मुझ जैसा ही था,
मानो ख़ुद से ही अब तक मैं हाथ मिलाता रहा।

एक आईने से लड़ता रहा तमाम उम्र मैं, और,
वो आईना मुझे अपनों का चेहरा दिखाता रहा।

मेरी माँ कहती थी दिल मत तोड़ना किसी का,
इसलिए मैं आज तक हर रिश्ता निभाता रहा।

उस इक दर्द ने जब बढ़कर जीना मुहाल किया,
मैं हरपल रोकर भी अक्सर सबको हँसाता रहा।

गुनाह कर के भी तो गुनहगार नहीं हो

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