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इस उजले रास्ते की दीवारों के बीच
एक खाली, खामोश और गुमनाम-सी मैं,
वैसी ही हूँ जैसे कोई चातक पक्षी
होता है एक लम्बे समय का प्यासा
स्वाति नक्षत्र से मिलने वाली कुछ बूंदों का।
इस उजले रास्ते में हैं अनगिनत चेहरे
जिनकी पहचान मेरे लक्ष्य की तरह
अब तक अछूती है मुझसे।
मैं इनको देख सकती हूँ और
छूकर महसूस कर सकती हूँ
इनके उदास चेहरे
और इन चेहरों पर बिखरा पीलापन।
इनकी आवाज़ में छुपी हुई पीड़ा
बिखरती जा रही है मेरे चेहरे पर
और मैं अपने लक्ष्य के पीछे
भागती, गिरती, उठती
बस चलती जा रही हूँ।
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