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हे सूर्य देव
अपने ताप से
शीतल कर दो धरती
फैला कर अपना प्रकाश
उज्जवल कर दो चरित्र
निर्विकल्प निराकार
आलोकित कर तिमिर को
सिखा दो जड़ता में
जीवन संचार
ऊष्ण धारा में बहा दो
क्लेेेश जगत के
अभिशप्त से जीवन को
वर दो
यश दो
वैभव दो
हे जग के प्राण
अभय करो
सप्त स्वर के गान से
भू को भरो...
अपने ताप से
शीतल कर दो धरती
फैला कर अपना प्रकाश
उज्जवल कर दो चरित्र
निर्विकल्प निराकार
आलोकित कर तिमिर को
सिखा दो जड़ता में
जीवन संचार
ऊष्ण धारा में बहा दो
क्लेेेश जगत के
अभिशप्त से जीवन को
वर दो
यश दो
वैभव दो
हे जग के प्राण
अभय करो
सप्त स्वर के गान से
भू को भरो...
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