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संघर्षों से लड़ के,
पत्थरों पे चल के,
धूप में जल के,
अभाव में पल के,
भूखा सोने को मजबुर हूँ,
मै, मजदूर हूं ।
दे के ठहर तुम्हे,
छत की मंजुल छांव भी,
दूर से आकर दिया है,
अपनेपन का भाव भी,
पर खुद
बादलों के नीचे सोने को, मजबुर हूं,
मै एक, मजदूर हूं।
ना चाह आलीशान बंगला,
ना रकम की चाह है,
सम्मान का भूखा हूं मै ,
स्वाभिमान ही मेरी चाह है,
दो रोटी के लिए ही,
घर से अपने दूर हूं,
हां मै, मजदूर हूं।
. मजदूर दिवस को समर्पित
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