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ले कर निकले
बस्ता किताबों का
जिम्मेदारियों की बोझ ने
कमर पकड़ ली
रास्ते ले कर चलें थे
बिना किसी पते के
अब मंजिल की फिक्र
रात की नींद ले गई
आंख पर पट्टी बांध
भागना पड़ रहा
सब के साथ
की कहीं सबको तो नही पता
वो पता जो हमें नहीं पता
भीड़ हज़ा
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