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चांद


कुछ थोड़े चांद से हैं ,

थोड़े आधे पर पूरे


चांद जैसी चमक तो है मुझपे

पर साथ में हैं कुछ उसके दाग ,

जो बेहद खूबसूरत हैं,


वैसे सूरज में दाग नहीं पर चाहते तो सब

चांद को हैं।

क्यूंकि चांद में दाग 

तभी तो वह सुंदर हैं।



चांद जैसी शांति तो नहीं हैं,

पर हां चांद जैसा सुकून 

ज़रूर हैं।


कभी देखा हैं चांद को गोर से 

कितना रहस्यमय, अकेला , दुर्लभ।

कुछ यूहीं हूं मैं भी

रहस्यमय, अकेली मगर दुर्लभ।



चांद जैसा प्रेम हैं मेरा

घट ता हैं मगर

पूरा होने के लिए।




क्या पूर्णिमा का चांद तुमको मेरी याद नहीं दिलाता?


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