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राग कितने भी हम गुनगुनाते रहें,
वो वतन का तराना नहीं भूलता |
चैन की नींद अब मुझको आती नहीं,
लोरियों का सुनाना नहीं भूलता |
आज थाली में कितने भी पकवान हों,
माँ के हाथों का खाना नहीं भूलता |
चाहे कद में या पद में बड़े हो चले,
मेरा बचपन पुराना नहीं भूलता |
मन लगाने के कितने तरीके बने,
पर वोमेलों में जाना नहीं भूलता |
दौड़ते सेहुए सब कहाँ जा रहे,
साथ मिलकर वो खाना नहीं भूलता |
हर तरफ चाहे कितनी चकाचौंध हो,
अब भी गुजरा जमाना नहीं भूलता |
तैरने को तो कितने तरणताल हैं,
घाट गंगा नहाना नहीं भूलता |
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