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अभिव्यक्ति की सीमा से है जो परे
भावना वो अनूठी जगाती है माँ
मेरे होने में उसका भी होना सदा
गूँज बनकर ह्रदय में समाती है माँ
खुद की पीड़ा भले कितनी सहती रहे
दर्द संतान के सह न पाती है माँ
भूल जाती कभी कि संवारना भी था
अपने बच्चों की दुनिया सजाती है माँ
त्याग कर अपने सुख कि सभी लालसा
नींद देकर भी हमको सुलाती है माँ
जब कोई न सुने आखिरी आस वो
भूल सारी हमारी भुलाती है माँ
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