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घर
घर को ज्यादा संवारना
अब अच्छा नहीं लगता
क्योंकि शायद फिर
घर घर नहीं लगता
वो एक घर था
जिसे सब मिलकर
संवार लेते थे
जरूरत भर का
और बना रहता था
घर के होने का अहसास
वो जरूरत भर का संवारना
सबका अपना नज़रिय था
अपना अपना तरीका था
बात घर की करती हूँ
मकान की नहीं
क्योंकि मकान तो बदले हैं
फिर भी घर वही था
क्योंकि वही थे सब
हो जाते हैं
समय के साथ
सबके अपने अपने मकान
और शायद घर भी
पर गहरी नींद के सपने में
रह रह कर आता है
बचपन का अपना
वही पुराना घर
वैशाली साहू 'गंगोत्री'ा
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