कितने राजमुकुट बदले पर
हर बार मनुष्यता हार गयी
भूख गरीबी लाचारी
कितनों को ही मार गयी
समाचार ऐसे सुन कर
हृदय विदीर्ण होता है
अन्न उगाने वाला भी जब
अन्नविहीन Read More
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