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कितने ज़ख़्मो को दिल मे छिपाया है तुमने।
फिर से किसी को मोहब्बत बनाया है तुमने।।
वो था न मोहब्बत के क़ाबिल कभी, फिर भी काट दी इंतज़ार में कितनी रातें तुमने।
अब आईने को गौर से देखो ज़रा,
क्या फिर सुनी माँग को सजाया है तुमने।।
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