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खण्डित मन के युग्मों को त्यागकर,
मन की अभिलाषाओं से कर दे नया शंखनाद
कर्म की उज्ज्वल-गाथा सुनाने के बाद,
कर आचमन अपने विजय-पथ का,मृदंग-मंजीरे बजाकर।
उकेर दे मन की आभाएँ सारी,
नवनिर्माण के इस सुंदर पटल पर।
सजा दे मन के हर कोने में तीव्र ज्योत्स्ना की चिंगारी,
मांगकर परमात्मा से महाशील पथ का अटल वर।
लक्ष्य की छाया में,कुंठाओं को करा अब विश्राम।
संकल्प,सिद्धि और संस्कार की त्रिवेणी की बनकर धारा,
परिश्रम और धैर्य के तरुवर की शाखाओं का लेकर
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