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बरसता नहीं सावन
बूंदों से नाराज़ है
तारे सारे सो गए
आसमां से नाराज़ है
सुबह शब से ; आइना अक्श से नाराज़ है
आँखें अब नम नहीं
अश्कों से नाराज़ है
राहें हैं गुम कहीं
मंज़िलो से नाराज़ हैं
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