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स्कूल बन चुका है व्यापार,
फरमाइशों की हो रही भरमार,
किताबों में है जिल्द चाहिए,
कॉपियों में भी है दरकार
जूते इनको पॉलिश चाहिए,
पढ़ाई-लिखाई सब दरकिनार
कपड़ों में भी क्रीच चाहिए,
भले खर्च हो एक हजार
समय-समय पर पोशाक बदलना,
मासिक शुल्क भी हो रहा बेशुमार
बताकर शिक्षा के प्रति समर्पित खुद को,
वो लूट रहे हैं बारंबार
व्यवस्थापक और अभिभावक में तकरार,
साथ ही बच्चों पर भी पलटवार
लगना चाहिए इन पर अंकुश,
कहां से लाएगा गरीब - लाचार।
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