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हतप्रभ खड़ा देखता मैं
इन बादलों के घेरे को,
नाचते गाते आमोद से
आते सलिल की बारात को
जाने किसे ब्याहने को
आश्रा की ज्योति बन
अरुण्य की बूंदे लिए
किस बाबुल के आंगन
मेघ आए बरसने को
देखू भी उस अमोदनी को
प्रेरणा की उस रोशनी को
साजो श्रृंगार में रत होगी
अपर्णा सी विभूषित होगी
मेघों की वर्षा से मिलकर
अवनी कितनी तृप्त होगी
इन्द्र्वज्र से बादल गरजे
खग विहग पशु सब चौंके
आशा आह्राद बहाने को
उर्यानी कुरूप राक्षस बनकर
मेघ आए अब और निखर
क्या बोध इस बाला को
भारी बोझ इन श्रृंगारॊ में
वर्षा की मधुर फुहारों में
उल्लास भरे बचपन को
छलने आए ये निठूर मेघ
इस बाला को ठगने को
नए वेश और परिधानों में
सलिल नही क्या विष लेकर
क्यों छलने आए हो वरीधर
ओ मेरी नन्हीं चिड़िया
ओ मेरी प्यारी बिटिया
आते इन पिचासो को
तू कैसे पहचानेगी!
माली जब सींच ना सकता था
स्नेह प्यार ना दे सकता था
किस हक से कली ले आया
जब रिक्त नही थी बगिया में
घनघोर घटाओ के घेरे ने
ढकी भोर की पहली किरण
जो अभी तो चली थी
तिमिर को मिटाने,
जो अभी तो चली थी
सोए शकुन्तॊ को जगाने
जो अभी तो चली थी
गहन के वृक्षों को उठाने
अपने अंगना और बागिया में,
फैलने दो इन किरणों को
छटने दो मेघों को
महकने को कुमुदनी को
मत छीनो ये हर्षो उलाश
मत छीनो यह बचपन,
शिक्षा और प्यार ।
इन बादलों के घेरे को,
नाचते गाते आमोद से
आते सलिल की बारात को
जाने किसे ब्याहने को
आश्रा की ज्योति बन
अरुण्य की बूंदे लिए
किस बाबुल के आंगन
मेघ आए बरसने को
देखू भी उस अमोदनी को
प्रेरणा की उस रोशनी को
साजो श्रृंगार में रत होगी
अपर्णा सी विभूषित होगी
मेघों की वर्षा से मिलकर
अवनी कितनी तृप्त होगी
इन्द्र्वज्र से बादल गरजे
खग विहग पशु सब चौंके
आशा आह्राद बहाने को
उर्यानी कुरूप राक्षस बनकर
मेघ आए अब और निखर
क्या बोध इस बाला को
भारी बोझ इन श्रृंगारॊ में
वर्षा की मधुर फुहारों में
उल्लास भरे बचपन को
छलने आए ये निठूर मेघ
इस बाला को ठगने को
नए वेश और परिधानों में
सलिल नही क्या विष लेकर
क्यों छलने आए हो वरीधर
ओ मेरी नन्हीं चिड़िया
ओ मेरी प्यारी बिटिया
आते इन पिचासो को
तू कैसे पहचानेगी!
माली जब सींच ना सकता था
स्नेह प्यार ना दे सकता था
किस हक से कली ले आया
जब रिक्त नही थी बगिया में
घनघोर घटाओ के घेरे ने
ढकी भोर की पहली किरण
जो अभी तो चली थी
तिमिर को मिटाने,
जो अभी तो चली थी
सोए शकुन्तॊ को जगाने
जो अभी तो चली थी
गहन के वृक्षों को उठाने
अपने अंगना और बागिया में,
फैलने दो इन किरणों को
छटने दो मेघों को
महकने को कुमुदनी को
मत छीनो ये हर्षो उलाश
मत छीनो यह बचपन,
शिक्षा और प्यार ।
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