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इस तरह जीने का सामान जुटाता क्यों है।
ख़र्च करना ही नहीं है तो कमाता क्यों है।

चाहता है वो कोई काम कराना मुझसे,
वरना मरने से मुझे रोज़ बचाता क्यों है।

- उत्कर्ष अग्निहोत्री 

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