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जब वो नजरें मुझे मिली तब कैसे मन में बातें चली ...



१ 

वो अकेली नजरें किसी को तलाश रही थी 

वो अकेली नजरें किसी को चाहा रही थी। 

किस्मत हो कर पूरी तरह से मेहरबान

वो अकेली नजरें किसी को अपना बना रही थी।। 



वो नजरें थी लिए खूबसूरत अहसास 

वो नज़रे थी कितनी पागल मिजाज।  

केवल मेरी नजरों को पाने की खातिर

उन्होंने अपनाया अपना आशिक़ अंदाज।। 



३ 

मेरा दिमाग था दिल से ज्यादा ताकतवर 

मेरी नजरें थी मेरे दिमाग की नौकर । 

दिल देता था लक्ष्य को पल पल ठोकर 

मैं बन गया लक्ष्य का ही नौकर ।। 



४ 

लक्ष्य की ललचाई लालच में 

उन नजरों को खूब ठुकराया 

लक्ष्य तो नहीं मिला

साथ ही उन न्यारी नजरो को भी गवायाँ ।। 



५  

शायद मैं ही गलत था 

लक्ष्य पे लगा आरोप बेमतलब था। 

उन नज़रों में कुछ तो बात थी

जिन्ह्ने देखकर मेरे दिल में भी चाहत जगी ।। 



६  

उन नजरो ने मेरी नज़रों को दी पुकार 

जो आशिकी के लिए थी सदा तैयार। 

कोई भी देख रहा हो इधर-उधर अंदर या बाहर

ले जाना चाह्हती थी मेरे नजरों को स्वर्ग के द्वार।। 



७ 

देख इस पागलपन को हवा ने छुपी साध ली 

इस पागलपन से सूर्य प्रकाश और चका चोंध हो गया।  

मैं न था इस पागलपन के चक्कर में

इस पागलपन से मेरा एक्सीडेंट होते होते रहा गया। 



८ 

रात्रि का अँधेरा चन्द्रमा को रास नहीं

अब उन नज़रों के पुनः लौटने की आस नहीं। 

चाहत तो हूँ की ऐसा न हो 

पर मेरे लक्ष्य को उन नज़रों की प्यास नहीं।। 



उन नजरों को देख के रोज 

अगली घटना को मैं लेता सोच।  

मेरे दिमाग को क्या मालूम ...  

उन नज़रों को बार बार सोच 

कैसे मेरा दिल लेता एकांत में मंद मंद मौज।। 



१० 

उन नजरों की थी ऐसी नियत 

नजराना बनाने की घनघोर चाहत। 

नियति भी नियम कायदे होकर भूल 

उन नजर को मुझसे मिलाने में हो गई पागल।।  



११ 

उन नजरों को पाए बगैर कोई नहीं रहा पाए 

उन नजरों को चाह बगैर कोई नहीं जी पाए। 

मेरी नजरें भी उन नज़रों से नजारनें की चाह रखती 

पर मेरा दिमाग हुआ था मरे दिल पर हावी।। 



१२

उन नजरों की पसंद पर मुझे कोई एतराज नहीं 

उन नजरों की चाहत पर मुझे कोई लाज नहीं। 

मासूमियत लिये वो नजरें दिखाती अपना दर्द  

मैं ठहरा नासमझ, समझ ही नहीं पाया उन नजरो की कीमत।। 



१३

अगर समुन्दर की गहराई मैं समां जाऊं  

असंना की ऊंचाई से बदलो में छूप जाऊं।  

या इलेक्ट्रान की गोद में भी बैठ जाऊं 

तब भी वो नजरें मुझे ढूढ़ ही लेंगी।। 



१४

चिडियो की चहचहाट सवेरे को देखी मुस्कुराहट 

सूर्य का उजाला सारे ब्रम्हांड के लिए ऊर्जा का प्याला।  

चांदनी रात देखी अंदर को मध्यम प्रकाश ।

वो नज़रे जब दिखती, मेरे हृदय में जगती खूबसूरत अहसास।।  



 १५

नजराने के लिए उन नजरो में कितनी फिक्र 

प्यार भरी नजरो में था केसा जिगर। 

मन करता वो नज़रे सदा सामने रहे 

में भी करता फ़िक्र, लक्ष्य न होगा अगर।। 



१६

जब दिमाग दिल को रोक नहीं पाया। 

और वो नजरे नशे में चूर मेरी नजरों तक पहुंची,

मैं ही जनता हूँ,  

उन दीवानी नजरो मैं थी कैसे बड़बोली ख़ामोशी।।  



१७

वो नजरें करती थी किस तरह दीदार 

देखकर मेरी नजरों को भर आता प्यार। 

मेरे सिवाय कोई न था इस दुनिया में

जिसके समक्ष वो नजरें करती प्यार का इकरार ।।



१८

उन नजरों में थी कितनी मुस्कराहट 

उन नजरों में दिखती अपनेपन की चाहत। 

तनिक मौका पाकर मेरी नज़रों से जा मिले

ऐसे बुझाती वो नजरें अपने दिल को प्यास ।। 



१९

उन अकेली नज़रों की देख के पीड़ा 

मेरी दिल को भी हुई उनसे दिल-लगी की तृष्णा।  

उन नजरों का बार बार मेरी नजरों को मनाना 

शायद इसीलिए आज वो नजरें कर बैठी मुझसे घृणा।। 


२०

उन नजरों में न था कोई धोखा

किस्मत ने दिया मुझे हमेशा मौका। 

दो नजरों के नजराने से किसी को क्या दिक्कत 

मेरा ही लक्ष्य था जिसने मुझे रोका।। 



२१

वो नजरें थी कितनी चाहत भरी 

वो नजरें थी कितनी प्यार भरी।  

जिस भी नज़रों से टकराय वो नजरें 

उन नजरों को अपना बना कर ही दम लेती।। 



२२

वो नजरें ढूंढ रही थी चाहत का बसेरा 

वो नजरें दे रही थी मेरी नज़रों पे पहरा।  

किस तरह बताऊँ मैं वो प्यारा चेहरा

जिसने मेरे अंतर्मन को घेरा।। 



२३

देखकर जिन नज़रों को अनदेखा कर दिया

प्यार और चाहत भरी नज़रों को यूँ ही ठुकरा दिया। 

इसमें मेरी कोई गलती नहीं...नज़रों 

मेरा ही लक्ष्य था जिसने मुझे सहारा दिया।। 



२४

बच्चों की नजरों में होती मौज मस्ती की चाह 

युवाओं की नज़रों में होता सुखद भविष्य की राह। 

बुजुर्गों की नज़रों में अनुभाव का औजार ।

.....उन नजरों में था केवल करना मेरी नज़रों का दीदार।। 



२५

वो नजरें निकल पड़ती अभिमान लिए 

वो नजरें निकल पड़ती प्यार के लिए 

प्यार तो दूर, चाहत की चिंगारी तक उनको नसीब न हुई 

फिर भी वो नजरें निकल पड़ती इंतजार लिए।। 



२६

उन नजरों में नहीं था मेरी नजरों से मिलने का अनुमति पत्र 

वो नजरें अपनी मन मर्जी से चलती। 

जहाँ कही भी मेरी नजरों का अकेला पाती ...

अपना तड़पता दिल दे बैठती।। 



२७

अनुमति नहीं थी किसी दिल-ए-चाहत की 

उस चाहत से मैँ हुआ अचंभित । 

मेरा लक्ष्य ही देता मुझे राहत 

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