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Kumar VishwasPoetry1 min read

ईश्वर से यही अरज

Umesh ShuklaUmesh Shukla February 17, 2023
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अपनों से नहीं कह सका 


कभी अपने मन की बात


ऐसा करने से रोकते रहे


सदा मेरे ही कहीं जज़्बात


ना सुनने का माद्दा ईश्वर ने


बख्शी हमें जरूरत से कम


खुशियों की तुलना में कुछ


ज्यादा ही रहे जीवन में ग़म


दिल ही दिल समेटे रहता मैं


अपनों के प्रति उमड़ता प्यार


डर यही बना रहे कि सिर पर


छाएं नहीं गम के घन बेशुमार


ईश्वर से यही अरज कि रखें


आत्मबल को मेरे सदा पुष्ट


अपनों की अपेक्षाओं पर मिलूं


उन्हें मैं सदा सर्वदा ही दुरुस्त


मन में पुष्पित पल्लवित होती


रहे परस्पर प्रेम की अमर बेल


जीवन को बाधाओं से पार पा


मैं उन्हें हाशिए पर सकूं ढकेल

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