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अपनों से नहीं कह सका
कभी अपने मन की बात
ऐसा करने से रोकते रहे
सदा मेरे ही कहीं जज़्बात
ना सुनने का माद्दा ईश्वर ने
बख्शी हमें जरूरत से कम
खुशियों की तुलना में कुछ
ज्यादा ही रहे जीवन में ग़म
दिल ही दिल समेटे रहता मैं
अपनों के प्रति उमड़ता प्यार
डर
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