Share0 Bookmarks 252223 Reads0 Likes
जीती थी जिसने दुनिया शमशीर बन के
लौटा था इस जहाँ से फ़क़ीर बन के
मैं तो यूँ भी मंज़िलों पर ठहरता नहीं
क्या करोगी मेरी तक़दीर बन के
मेरी वफ़ादारी का यह सिला हुआ
यार मेरा था दुश्मनों से मिला हुआ
क़िस्मत के फ़ैसले से हम दोनों हैं नाख़ुश
जाने किसके हक़ में यह फ़ैसला हुआ
ना ज़्यादा कुछ समझा हूँ, ना ज़्यादा कुछ कहता हूँ
याद आऊँ कभी तो जी लेना, काग़ज़ पे उकेरा लम्हा हूँ
चंदा नहीं जो रात सजाऊँ, घट जाऊँ बड़ जाऊँ
छोटी सी
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments