
तु नख से शिख तक नश्वर है
तुझे फिर काहे का तेवर है
वो कबाड़ीवाला आयेगा
तेरी बाँह पकड़ ले जायेगा
ना पूछेगा ना बोलेगा
ना नापेगा ना तोलेगा
तुझे जाना हो ना जाना हो
सब उसकी मर्ज़ी पर निर्भर है
तु नख से शिख तक नश्वर है
तुझे फिर काहे का तेवर है
तुझे दूर देश ले जायेगा
तेरा सब पीछे रह जायेगा
तेरी धन दौलत तेरे महल सलोने
छूटेंगे तेरे खेल खिलोने
जिन आँखों पर था जान छिड़कता
कुछ गदगद हैं कुछ निरझर हैं
तु नख से शिख तक नश्वर है
तुझे फिर काहे का तेवर है
वह अजब कबाड़ीवाला है
वह सब कुछ जाननेवाला है
तेरा पूर्जा पूर्जा कर देगा
तुझको मटकी में भर देगा
आया था काँधे चड़ कर तु
अब जाता फिर काँधे पर है
तु नख से शिख तक नश्वर है
तुझे फिर काहे का तेवर है
वहाँ तेरे पुर्ज़े खोले जायेंगे
और अलग से तोले जायेंगे
वहाँ कर्म का लोहा महंगा है
और मोह का सोना सस्ता है
वहाँ कबाड़ीवाला बोलेगा
कितना क़र्ज़ा तेरे सिर पर है
तु नख से शिख तक नश्वर है
तुझे फिर काहे का तेवर है
हर संत तुझे यह समझाएगा
तू पाँच सधा एक सध जाएगा
तुझे वही बनाने वाला है
और वही कबाड़ीवाला है
भेजा धरती पर गिरधर ने
लेने आए ख़ुद गिरधर है
तु नख से शिख तक नश्वर है
तुझे फिर काहे का तेवर है
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