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जिसके लिए हूँ कुर्बान, वही खफा है मुझसे ,
करुँ तो क्या करुँ मैं ? समझाना बहुत है मुश्किल ।
खुद्दार हैं सभी हम, खुद्दारी मेंरा न समझा ,
इल्जाम उलझनो का, मिटाना बहुत है मुश्किल ।।
देश है हमारा , वतन का हम रखवाले ,
गुजरे हुए वो गर्दिश, समझाना बहुत है मुश्किल ।
जिसके लिए हूँ कुर्बान ,वही खफा है मुझसे,
करुँ तो क्या करुँ मैं ? समझाना बहुत है मुश्किल ।।
विकास का रफ्तार है, हलचल सभी के दिल में ,
उम्मीद से भी ज्यादा , उलझन हमारे दिल में ।
सरहद भी है सुरक्षित , काश्मीर भी हमारा,
जो कर सका न कोई , वो कर के हम दिखाया । उलझन में कुछ पड़े हैं, सुलझाना बहुत है मुश्किल ,
करुँ तो क्या करुँ मैं ? समझाना बहुत है मुश्किल ।।
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