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जंगल राज नहीं आतंक राज, बात सिर्फ है कुर्सी का ।
चिन्तन नहीं आज चिन्ता है, प्राप्त करने को कुर्सी का ।
कुर्सी के लिए ही भिन्नता है,चिंतन नहीं आज चिंता है ।
कोई सेकुलर बन कर आया, कोई धर्म का लिया सहारा ।
अपनी डफली अपना राग, चाहे टूटे भाईचारा ।
सोच सोच कर घृणा होता, अधिकांश का दिल है काला ।
अंधकार है, उग्रवाद है, पद पाने का सिर्फ ख्वाब है ।
निस्वार्थ अगर हम हो जाएं तो बन जाएं सब भाई भाई ।
जाति धर्म का भेद मिट जाए, मिट जाए जो बना जुदाई।
एक समय था, मिलजुल कर, गुलामी का जंजीर तोड़, आजाद हुए थे ।
न कोई दिवाल भिन्नता, अपनापन था, अपनी अपनी कुर्बानी दे, वो भारत माँ को आजाद किए थे ।
वह जज्बा आज खत्म हो गई , चाहत सिर्फ है कुर्सी का ।
कर्तव्य में खींच-तीर, अधिकार मिले, लड़ाई सिर्फ है कुर्सी का ।
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