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जाति , रंग ,रुप से कभी कोई बड़ा नहीं ।
बुद्धि, विवेक, बल अगर कोई किसी से कम नहीं ।।
चरितार्थ है इतिहास में लाखों उदाहरण पड़े ।
पर अम्बेदकर और एकलव्य का जीवन कर रहा रोंगटे खड़े ।।
ये भेद भाव करके कुछ लोग सर्वोच्च बनने पर अड़े।।
ये भ्रान्तियाँ कब मिटेगा? सोचने का वक्त है ये ।
उलझे हुए इस कड़ी को सुलझाने का वक्त है ये ।।
युग की दुहाई दे ,कुछलोग यहाँ सम्मान पता है ।
शोषण का इस हथियार से वो घायल करता है ।।
युग युगांतर कर्मशील ही स्वच्छ परिवेश बनाया है ।
पर दबंग लोगों के द्वारा हर दम वो ठोकर खाया है ।।
कर्ण उपेक्षित हो कर , पुरुषार्थ नहीं दिखला पाया ।
ये आराजकता,भ्रष्टाचार का केन्द्र बिन्दु फिर पनप रहा है ।।
बदलाव का शंखनाद है, समझे सोचने का वक्त है ये ।
समझबुझ कर अपने आप में बदलाव लाने का वक्त है ये ।।
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