
देख रहा हूँ,
आज हर जगह अंधकार की छाया ।
माया में लिपटी हर किसी का काया ।।
कर्तव्य हीनता,अधिकार का शिर्फ बोलबाला ।
देख रहा हूँ, आज हर जगह अंधकार की छाया ।।
सागर उमड़ी , चल रही तेज ये धारा ।
डुब रहे हैं सभी मगर ,दिखता नहीं किनारा ।।
अधिकार के लिए लड़ाई, कर्तव्य को किया किनारा ।
संकुचित भावना पनप रही,सिर्फ धन दौलत ही प्यारा।
देख रहा हूँ आज हर जगह अंधकार की छाया ।।
दिल में स्वार्थ झकझोर रहा है ,
अयासी में मन ड़ोल रहा है ,
कलुषित भावों में पड़ा आज ये काया ।
देख रहा हूँ, आज हर जगह अंधकार की छाया ।।
फूल नकली घर घर में है, असली क्यों ले आया ?
पूछ इसी का तुच्छ वही है असली जो मुरझाया ।
देख रहा हूँ आज हर जगह अंधकार की छाया ।।
रावण का माया जाल बिछी है ,
पूरे पर्वत पर दीप जलाया,
हनुमान जीवन बुटी को वहाँ खोज न पाया,
ताकत के बल, पूरे पर्वत को उठा वो लाया ।
भरत जब देखा हनुमान को वो भी धोखा खाया,
देख रहा हूँ आज हर जगह अंधकार की छाया ।।
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