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अनेक कष्ट सहकर "माँ" हमें जन्म दे जाती है,
शिशु रूप में "पिता" हमें सीने पे सुलाते है ।
हमारा रोना सुनते ही "माँ" झट से जाग जाती है,
अपने रोने से हम "पिता" को पूरी रात जगाते है ।
माता-पिता दोनों को समर्पित पंक्तियां;
उनकी उंगलियां पकड़कर हम चलना सीखते है,
हमारे लड़खड़ाते कदम का वो सहारा बनते है ।
उनके दिए संस्कार से हम समाज के समक्ष आते है,
उनके दिए प्यार से हम प्यार का मोल समझ पाते है ।
कदम कदम पर वो हमारा मार्गदर्शन किया करते है,
हमारी सफलता पर सबसे ज्यादा खुशी लुटाया करते है ।
वो हमारी हर गलती को सीख बताया करते है,
हमारे प्रति निस्वार्थ भाव से प्रेम
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