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रूके थे जब लाल बत्ती पर,
नजर पड़ी उन मासूमों पर ।
वो मांग रहे थे हाथ फैलाकर,
भगा दिया जा रहा था उन्हें फटकारकर ।
नम थी आंखे यह सब देखकर,
दिल बैठा जा रहा था यह सब सोचकर ।
वो बच्चे तो थे,
पर उनसे बचपन की यादें छीनी जा चुकी थी ।
वो मासूम तो थे,
पर उनसे मासूमियत छीनी जा चुकी थी ।
कहते भी किससे,
इजाजत उनके परिवार की जो थी ।
जाते भी कहां,
जिम्मेदारियां उनके कांधों पर जो थी ।
: तुषार "बिहारी"
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