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,,,हो स्याह रात या आसमां में बिखरी हो धवल चांदनी,
जैसे सर्द रात में कोई मुसाफिर खिंचा चला आता है ऊष्मा को तलाश करते करते अपनी मंजिल तक...।
जैसे किसी नदी किनारे अर्धरात्रि सहसा कोई पियानो पर एक मधुर धुन छेड़ दे,
जैसे वर्षों से तप में बैठे बेसुध तपस्वी को उसके प्रिय परमेश्वर के कदमों की आहट सुनाई दे...।।
जैसे ब्रह्मांड में फैली असंख्य आकाशगंगा में दूर से दिखाई देता धुव्र तारा...।।
तमाम शिकवे - शिकायतें मेरी काफूर हो जाती है हर रात,
कशिश भरी उनकी मधुर आवाज जब मेरे व्याकुल कर्ण को सुनाई दे जाए...!!
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