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,,,हो स्याह रात या आसमां में बिखरी हो धवल चांदनी,
जैसे सर्द रात में कोई मुसाफिर खिंचा चला आता है ऊष्मा को तलाश करते करते अपनी मंजिल तक...।
जैसे किसी नदी किनारे अर्धरात्रि सहसा कोई पियानो पर एक मधुर धुन छेड़ दे,
जैसे वर्षों से तप में बैठे बेसुध तपस्वी को उसके प्रिय परमेश्वर के कद
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