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"प्रिय नारी"


यह बात मैंने एक औरत बनकर ही समझी है

कि तुम्हारी सजावट अंदर की चीखों पर लगी महज़ एक पट्टी है।

जैसे अंग्रेज़ी में किसी वाक्य के बाद "फुलस्टाप" लगाते हैं,

तुम्हारे माथे की बिंदी वही बिंदू है

तमाम परेशानियों पर।

तुम्हारे गालों की लाली तुम्हारी मुस्कुराहट की तरह प्यारी है

मानो ढ़लते सूरज पर गुलाल छिड़क दिया हो किसी ने।

तुम्हारे हाठों से खिंची मुस्कान की रेखा

हर गहरे ज़ख़्म का है आईना।

बस! देखने के लिए हुनर और नज़र चाहिए।


तुम, एक औरत हो और औरत होने की

एक बड़ी खासियत यह है कि

औरत केवल औरतों के जिस्म में ही नहीं

मर्दों के जिस्म में भी पाई जाती हैं।

'औरत' एक लिंग नहीं, एक 'स्थिति' है

ऊपर वाले की एक हसीन परिस्थिति है।

मैं कभी उन लोगों को नहीं समझ पाऊंगी

जो तुम्हें इज़्ज़त के काबिल नहीं समझते,

जाने किस कोख के हैं वो जन्में?

जाने किस कोख से हैं वो निकले?

ऊपर वाले ने एक बच्चे को दुनिया में लाने का ज़रिया

औरत को ही क्यों बनाया?

क्योंकि एक औरत ही है

जो समंदर की तरह गहरी है मगर शांत रहना जानती है

जो आग की तरह शक्तिशाली है मगर रौशनी देना जानती है

जो हवा की तरह चलती है और छेड़ी जाए,

तो तबाह करना जानती है

जो धरती की तरह पनाह देती है मगर कोई उसे ही खाने को आए तो वो जवाब देना भी जानती है।


प्रिय नारी,

यह दुनिया तुम्हें नोच कर खाने वालों की क़तार में शामिल है

पर तुम्हारी हिम्मत तारीफ़ के काबिल है।

एक नारी के कंधे नाज़ुक नहीं

पर वो तमाम बोझ, बिना किसी शिकायत के सहें,

ऐसे भी नहीं।

हर उम्मीद का बोझ उसके कंधों पर रख दिया जाता है।

कोई और करे ना करे, वो त्याग कर लेगी

ऐसा समझ लिया जाता है।

एक बेटी को विदा करने की कितनी जल्दी रहती है सभी को या अगर वो विदा हो चुकी हो तो उसे नहीं नज़र आता अपनी घर भी अपना ही।

एक औरत का असली घर, वो खुद होती है।

ये समाज औरत के काबिल नहीं है,

औरतें खुद अपना समाज हैं।


Women's Day उन मर्दों का भी है

जो रोने से नहीं डरते या "सिगमा मेल" समाज के खोखले विचारों का हिस्सा नहीं बनते।

औरत का दिन भला कैसे हो सकता है

जब औरत से ही दिन शुरु होता है?


-तुलसी


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