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क्रांति


मेरी नज़र में एक औरत आम इंसान ही तो है

जिसके शरीर को आठ घंटे की नींद चाहिए,

अपने परिवार से दुख-दर्द में उम्मीद चाहिए,

दाना-पानी वक्त पे चाहिए,

पैसे अपने हक़ के चाहिए।

औरत नहीं बनी है गृहस्ती में फस जाने के लिए

वो बनी है घर में रौनक लाने के लिए।

उसे अपनी मेहनत का फल चाहिए,

कामयाबी अपने बल पे चाहिए,

अहसान नहीं चाहिए!

उसके दिल को इज़्ज़त और

मन को प्रेम चाहिए।

प्रेम में शांति चाहिए।

औरत ये हक़ मांग ले

तो ज़माना कहता है,

"इसे क्रांति चाहिए!" 


-तुलसी

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