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सब चुप हैं !
नई बयार बह रही है,
सबको चुपचाप कह रही है,
चुप रहो, चुप रहो,
सब सहो, सब सहो,
दुःख है कोई, मत कहो,
बस कहो ...जय हो ...जय हो...,
बयार के बहाव को समझ रहे हैं लोग,
तभी उसे लगा रहे हैं भोग,
जरा-सी बात पर बिफरने वाले,
सहनशीलता का राग लगे हैं गाने,
तभी तो आज चुप्पी छा गई है,
अँधेरे का राग गा रही है,
आज जहाँ देखो हर कोई चुप है ;
ज्ञान चुप है, शान चुप है,
जाट चुप है, भाट चुप है,
धरती चुप है,आकाश चुप है,
नीति चुप है, रीति चुप है,
मान चुप है, ध्यान चुप है,
पवन चुप है, सूर्य चुप है,
इंद्र चुप है, कुबेर चुप है,
धीर चुप है, गंभीर चुप है;
वीर चुप है, हीर चुप है;
देव चुप है, दैत्य चुप है;
धन चुप है, मन भी चुप है,
नई बयार से सहमा-सहमा
जहाँ देखो हर कोई चुप है ।
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