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~श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा।~
वो अश्क़ अश्क़ बह रहमैं उदर से उतर रही
वो आते जाते उधर से
जिधर से मैं गुजर रही
वो नब्ज़ नब्ज़ सम्भाल रहमैं संभल संभल के चल रही
वो मन-ए-मकां बना रहे
मैं मनसूबे कुचल रही
हया नही हवा में
जो ओर ओर चल रहे
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