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वो perception से घिरी घिरी
एक अजीब सी guilt से भरी भरी
जिसे dreams word से allergy है
जो खुद को पीछे सबको आगे रखती है
ये नारी इतना क्यों डरती है
इसकी, उसकी ,सबकी
बातों का ताना बाना
अपने आगे पीछे रखती है
खुद की life का aim भी
दूसरों की मर्ज़ी से चुनती है
ये नारी इतना क्यों डरती है
दुर्गा , काली हैं नाम मिले
जिनसे बड़े बड़े असुर भी डरे
उन नामो को बस नाम समझ
उनकी शक्ति सब भूली है
ये नारी इतना क्यों डरती है
है दिया जगत को जन्म इसीने
पाला पोसा फिर बड़ा किया
बना सके वो naratives, इस लायक भी उसी ने किया
अब उसी जगत के naratives पर चलती है
ये नारी इतना क्यों डरती है
प्रतिष्ठा
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