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कंधे पर बैठाकर जो दुनियां दिखलाए
ऐसे मेरे बाबूजी
खुद भूखा रहकर
पेट भर मुझे खिलाए बाबूजी
अपने सारे दुख-दर्द को समेटे हुए
मेरे चेहरे पर खुशी लाए मेरे बाबूजी
कैसे-कैसे कष्ट झेल कर
मुझको खुश रखते बाबूजी
सुबह से लेकर शाम-रात तक
अथक परिश्रम करते बाबूजी
मेरी हर इच्छाओं की पूर्ति करते हैं बाबू जी
रात-रात भर जग कर खुद मुझको सुलाएं बाबूजी
अपने थोड़ा कम पहने पर
अच्छे कपड़े पहनाए बाबूजी
क्या-क्या लिखे
क्या-क्या गुण गाए बाबूजी
बस इतना समझो देवता से बढ़कर है बाबूजी
-प्रदीप
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