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खुद रातों को जगकर
जो मुझको सुलाती है
खुद भूखा रहकर
पेटभर मुझे खिलाती है
त्याग,तपस्या और समर्पण
जिसके हिस्से आता है
जिसके ऋण से कोई न
कभी मुक्त हो पाता है
जिसके आँचल में सारी
दुनियाँ सिमटी है
जिसके चरणों मे
चारो धाम की नगरी है
जिसके स्नेह मात्र से
सारे कष्ट दूर हो जाते है
जिसके ममता से सारे
काम सिद्ध हो जाते है
जिसका आशिष सदा
तुम्हारे साथ चलता है
जिसकी साया में
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