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"तुम्हें कौन जानता है? "
तुम्हें कौन जानता है?
हक़ीक़त में कौन?
वो जिसने तुम्हें सबसे बुरा होते देखा है,
या वो जिसने तुम्हें सबसे अच्छा होते देखा है,
कहीं चेहरे तो नहीं बदले तुमने?
बदले भी होंगे और बदलते रहोगे,
ये तो इंसानी फ़ितरत है।
बस ख़ुद को वही चेहरा दिखाना
जो तुम हो
हक़ीक़त में हो।
जब-जब ये होगा,
सब तुम्हें जानने लगेंगे,
हक़ीक़त में जानने लगेंगे।
- भारती
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