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"जाने क्या लिखती मिटाती हूँ"
जाने क्या लिखती मिटाती हूँ
दिल के पन्ने सिमटाती हूँ
अकेलेपन में मुस्काती
तन्हा भीड़ में भी हो जाती हूँ।
कभी दिन-दिन गिनती उंगली पर
कभी पल दो पल जी जाती हूँ
कभी चार कदम में थक जाती
कभी कोसों तक चल जाती हूँ।
बैठे-बैठे जाने कितने
यूँ बरसों मैं जी जाती हूँ।
जाने क्या लिखती मिटाती हूँ
दिल के पन्ने सिमटाती हूँ।
-भारती
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