Share0 Bookmarks 199873 Reads1 Likes
"औरत हूँ...ठीक हूँ"
किसी ने पूछा..कैसी हो?
ठीक हूँ
गिरती हूँ संभलती हूँ
चोट खाती हूँ
खुद ही मरहम लगाती हूँ
फिर चल पड़ती हूँ
खुद को उठाकर
दर्द होता है
कभी कराह लेती हूँ
कभी भूल जाती हूँ
जब जलती सब्ज़ी की
आती है बू
भूल जाती हूँ दर्द।
फिर सोते पे
याद आता है पर
अलसा जाती हूँ।
अपने लिए
भूलकर फिर
सोचती हूँ कल की
और जाने कब पलकें
पलकों से मिला लेती हूँ।
पौ फटने से पहले
अंगड़ाई ले लेता है मन
कम्बल में दुबक कर
सोचता है फिर आज की
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments