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ना जाने कितनी बार
उतारना पड़ता है
जिस्म से खाल
ना जाने कितनी
ख़्वाबों के पर्दे
उधेड़ने पड़ते हैं
ना जाने कितनी बार
चबा जाना पड़ता है
मन की आशंकाओं को
एक परत कोसा का
चीर के निकलना होता है
तितलियों को पहली उड़ान से पहले।
~त्राण
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