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जीवन में सम्भव नहीं
हर एक बार जीत जाना
अनुभव वो भी प्रबल है
टूटना और बिखर जाना
नियति है उल्हास किसी को
नियति है अन्याय भी
जैसे पत्थर पूज्य है
और है पत्थर रेत भी
बरसों लगे रेतों को
हिमालय बन जाने में
और समंदर सूखे कई बार
डूबने और उबर जाने में
सोचो परखो संकल्प करो
रुको ना जीत में ना हार में
राह हो दुर्लभ या जटिल हो
सम्भव है सब संसार में।
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