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मासूम सी किसी एक सुबह
इक बर्क़ सा पिघलेगा
एक रोशनी सी होगी
तमाशबीन ना होंगे
मशालें ना होंगी
इक माचिस की तिली से
कायनात आग़ाज़ करेगी
टूटेंगे पत्थर
और नदियाँ रास्ता बदलेंगी
इंक़िलाब सा होगा
मासूम सी किसी इक सुबह
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